Best read in a mobile phone device. वाराणसी के पावन घाट से आदि गुरु शंकराचार्य स्नान उपरांत शिष्यों सहित लौट रहे हैं और सामने से चांडाल उनके मार्ग को अवरुद्ध किए हुए खड़े हैं। आदि गुरु चांडाल को मार्ग से हटने के लिए कहते हैं और उसी क्षण एक विचित्र घटना घटती है और चांडाल के स्थान पर प्रगट हो उठते हैं देवाधिदेव महादेव। महादेव शिव मात्र दो पंक्ति में ही आदि गुरु से प्रश्न पूछते हैं। "तुम किसे मार्ग से हटने के लिए कह रहे हो" इसी श्लोक की अगली पंक्ति आदि गुरु शंकराचार्य के अंतःकरण को बेध कर उनके शुद्ध चैतन्य स्वरूप को छू जाती है। बस फिर क्या था, आदि गुरु सन्न खड़े रह जाते हैं और महादेव अंतर्ध्यान हो जाते हैं। और तदोपरान्त उनके भीतर से उद्भासित हो उठती हैं यह कालहीन पंक्तियां जो वेदान्त का सार स्वरूप नित्य अनित्य के भेद को दृढ़ भूमि करने हेतु प्रयास रत किसी भी साधक के लिए पथ प्रदर्शक हैं। इस संकलन को वह मनीषा पंचकम का नाम देते हैं। प्राचीन भारतीय मनीषा के निष्कर्ष स्वरूप इनका अध्ययन किसी साधक के हृदय में आत्म उत्कर्ष हेतु आलोक की स्थापना करते हैं।